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हिंदू नव वर्ष

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हिंदू नव वर्ष

( गुड़ी पड़वा ) 13 अप्रैल, 2021 

भारत का सर्वमान्य संवत विक्रम संवत है, जिसका प्रारंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है। ब्रह्म पुराण के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही सृष्टि का प्रारंभ हुआ था और इसी दिन भारत वर्ष में काल गणना प्रारंभ हुई थी। कहा है कि :-

चैत्र मासे जगद्ब्रह्म समग्रे प्रथमेऽनि

 शुक्ल पक्षे समग्रे तु सदा सूर्योदये सति।  – ब्रह्म पुराण

चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा वसंत ऋतु में आती है। वसंत ऋतु में वृक्ष, लता फूलों से लदकर आह्लादित होते हैं जिसे मधुमास भी कहते हैं। इतना ही यह वसंत ऋतु समस्त चराचर को प्रेमाविष्ट करके समूची धरती को विभिन्न प्रकार के फूलों से अलंकृत कर जन मानस में नववर्ष की उल्लास, उमंग तथा मादकाता का संचार करती है।

इस नव संवत्सर का इतिहास बताता है कि इसका आरंभकर्ता शकरि महाराज विक्रमादित्य थे। कहा जाता है कि देश की अक्षुण्ण भारतीय संस्कृति और शांति को भंग करने के लिए उत्तर पश्चिम और उत्तर से विदेशी शासकों एवं जातियों ने इस देश पर आक्रमण किए और अनेक भूखंडों पर अपना अधिकार कर लिया और अत्याचार किए जिनमें एक क्रूर जाति के शक तथा हूण थे।

ये लोग पारस कुश से सिंध आए थे। सिंध से सौराष्ट्र, गुजरात एवं महाराष्ट्र में फैल गए और दक्षिण गुजरात से इन लोगों ने उज्जयिनी पर आक्रमण किया। शकों ने समूची उज्जयिनी को पूरी तरह विध्वंस कर दिया और इस तरह इनका साम्राज्य शक विदिशा और मथुरा तक फैल गया। इनके कू्र अत्याचारों से जनता में त्राहि-त्राहि मच गई तो मालवा के प्रमुख नायक विक्रमादित्य के नेतृत्व में देश की जनता और राजशक्तियां उठ खड़ी हुईं और इन विदेशियों को खदेड़ कर बाहर कर दिया।

हिंदू संस्कृति के अनुसार नव संवत्सर पर कलश स्थापना कर नौ दिन का व्रत रखकर मां दुर्गा की पूजा प्रारंभ कर नवमीं के दिन हवन कर मां भगवती से सुख-शांति तथा कल्याण की प्रार्थना की जाती है। जिसमें सभी लोग सात्विक भोजन व्रत उपवास, फलाहार कर नए भगवा झंडे तोरण द्वार पर बांधकर हर्षोल्लास से मनाते हैं। इस तरह भारतीय संस्कृति और जीवन का विक्रमी संवत्सर से गहरा संबंध है लोग इन्हीं दिनों तामसी भोजन, मांस मदिरा का त्याग भी कर देते हैं।

इस पराक्रमी वीर महावीर का जन्म अवन्ति देश की प्राचीन नगर उज्जयिनी में हुआ था जिनके पिता महेन्द्रादित्य गणनायक थे और माता मलयवती थीं। इस दंपत्ति ने पुत्र प्राप्ति के लिए भगवान भूतेश्वर से अनेक प्रार्थनाएं एवं व्रत उपवास किए। सारे देश शक के उन्मूलन और आतंक मुक्ति के लिए विक्रमादित्य को अनेक बार उलझना पड़ा जिसकी भयंकर लड़ाई सिंध नदी के आस-पास करूर नामक स्थान पर हुई जिसमें शकों ने अपनी पराजय स्वीकार की।

इस तरह महाराज विक्रमादित्य ने शकों को पराजित कर एक नए युग का सूत्रपात किया जिसे विक्रमी शक संवत्सर कहा जाता है।

राजा विक्रमादित्य की वीरता तथा युद्ध कौशल पर अनेक प्रशस्ति पत्र तथा शिलालेख लिखे गए जिसमें यह लिखा गया कि ईसा पूर्व 57 में शकों पर भीषण आक्रमण कर विजय प्राप्त की।

इतना ही नहीं शकों को उनके गढ़ अरब में भी करारी मात दी और अरब विजय के उपलक्ष्य में मक्का में महाकाल भगवान शिव का मंदिर बनवाया।

गुड़ी पड़वा का दिन महाराष्ट्रीयन नव वर्ष के उत्सव का प्रतीक है। दक्षिण भारतीय राज्यों में, इस दिन को फसल दिवस के रूप में मनाया जाता है, जो वसंत के मौसम के प्रारम्भ को दर्शाता है।

यह दिन पूरे भारत में मनाया जाता है लेकिन विभिन्न नामों, सांस्कृतिक मान्यताओं और उत्सवों के साथ मनाया जाता है। इस दिन विभिन्न अनुष्ठान होते हैं जो सूर्योदय से शुरू होते हैं और पूरे दिन चलते रहते हैं।

हिंदू कैलेंडर के अनुसार, चैत्र महीने के पहले दिन को गुड़ी पड़वा के रूप में मनाया जाता है, जब किसान रबी फसलों को काटते हैं और इसे हिंदू नव वर्ष की शुरुआत मानते हैं। यह दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के नाम से भी काफी लोकप्रिय है।

महाराष्ट्र में लोग नए परिधानों में तैयार होते हैं। उनके घरों में, विशेष और पारंपरिक व्यंजन तैयार किए जाते हैं जैसे पूरन पोली, पुरी और श्रीखंड, मीठे चावल जिन्हें लोकप्रिय रूप से सक्कर भात कहा जाता है| लोग अपने दोस्तों और परिवार के साथ उत्सव का आनंद लेते हैं और सड़क पर जुलूस का हिस्सा बनते हैं।

गुड़ी पड़वा के दिन, भक्त भगवान ब्रह्मा की पूजा और अर्चना करते हैं जो ब्रह्मांड के परम निर्माता हैं। शास्त्रों और किंवदंतियों के अनुसार, यह माना जाता है कि उन्होंने गुड़ी पड़वा के दिन ब्रह्मांड का निर्माण किया था। ऐसा माना जाता है कि इस त्योहार सभी बुराईयों को दूर करता है और

सौभाग्य और समृद्धि को भी आकर्षित करता है। आंध्र प्रदेश और कर्नाटक राज्यों में इस अवसर को उगाड़ी त्योहार के रूप में मनाया जाता है। यह भी शुभ दिन है जब चैत्र नवरात्रि शुरू होता है।

शास्त्रों और हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, गुड़ी पड़वा का दिन मनाया जाता है क्योंकि यह शुभ दिन का प्रतीक है जब भगवान ब्रह्मा ने इस ब्रह्मांड का निर्माण किया था। इसके अलावा, यह उस जीत का भी प्रतीक है जब रावण को परास्त कर के भगवान राम अयोध्या वापस लौटे थे।

गुड़ी पड़वा वह अवसर है जो हूणों पर शाकास की विजय का प्रतीक है। गुड़ी पड़वा के पीछे की कहानी और शालिवाहन कैलेंडर के अनुसार, इस दिन हूणों को राजा शालिवाहन ने हराया था। किंवदंती में कहा गया है कि यह वह दिन है जब ब्रह्मा ने ब्रह्मांड की रचना की और इस प्रकार गुड़ी पड़वा के दिन, सत्य युग शुरू हुआ।

चैत्र ही एक ऐसा माह है जिसमें वृक्ष तथा लताएं पल्लवित व पुष्पित होती हैं। इसी मास में उन्हें वास्तविक मधुरस पर्याप्त मात्रा में मिलता है।
वैशाख मास, जिसे माधव कहा गया है, में मधुरस का परिणाम मात्र मिलता है। इसी कारण प्रथम श्रेय चैत्र को ही मिला और वर्षारंभ के लिए यही उचित समझा गया।

जितने भी धर्म कार्य होते हैं, उनमें सूर्य के अलावा चंद्रमा का भी महत्वपूर्ण स्थान है। जीवन का जो मुख्य आधार अर्थात वनस्पतियां हैं, उन्हें सोम रस चंद्रमा ही प्रदान करता है। इसीलिए इसे औषधियों और वनस्पतियों का राजा कहा गया है।

शुक्ल प्रतिपदा के दिन ही चंद्र की कला का प्रथम दिवस है। अतः इसे छोड़कर किसी अन्य दिवस को वर्षारंभ मानना उचित नहीं है।

संवत्सर शुक्ल से ही आरंभ माना जाता है, क्योंकि कृष्ण के आरंभ में मलमास आने की संभावना रहती है जबकि शुक्ल में नहीं।

ब्रह्माजी ने जब सृष्टि का निर्माण किया था तब इस तिथि को ‘प्रवरा’ (सर्वोत्तम) माना था। इसलिए भी इसका महत्व ज्यादा है।

नवसंवत्सर का हर्षोल्लास

आंध्रप्रदेश में युगदि या उगादि तिथि कहकर इस सत्य की उद्घोषणा की जाती है। वीर विक्रमादित्य की विजय गाथा का वर्णन अरबी कवि जरहाम किनतोई ने अपनी पुस्तक ‘शायर उल ओकुल’ में किया है।

सम्राट पृथ्वीराज के शासन काल तक विक्रमादित्य के अनुसार शासन व्यवस्था संचालित रही जो बाद में मुगल काल के दौरान हिजरी सन् का प्रारंभ हुआ। किंतु यह सर्वमान्य नहीं हो सका, क्योंकि ज्योतिषियों के अनुसार सूर्य सिद्धांत का मान गणित और त्योहारों की परिकल्पना सूर्य ग्रहण, चंद्र ग्रहण का गणित इसी शक संवत्सर से ही होता है। जिसमें एक दिन का भी अंतर नहीं होता।

सिंधु प्रांत में इसे नव संवत्सर को ‘चेटी चंडो’ चैत्र का चंद्र नाम से पुकारा जाता है जिसे सिंधी हर्षोल्लास से मनाते हैं।

कश्मीर में यह पर्व ‘नौरोज’ के नाम से मनाया जाता है वर्ष प्रतिपदा ‘नौरोज’ यानी ‘नवयूरोज’ अर्थात्‌ नया शुभ प्रभात जिसमें लड़के-लड़कियां नए वस्त्र पहनकर बड़े धूमधाम से मनाते हैं।

नववर्ष में सूर्य को जल अर्पित करते हुए कामना है कि हमारे देश के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक उत्थान का ‘सूर्य’ सदैव प्रखर और तेजस्वी बना रहें। जुबान पर नीम पत्तियों को रखते हुए कड़वाहट को त्यागें और कामना करें बस मिठास की। यह सांस्कृतिक सौन्दर्य का पर्व है, इस दिन अपनी संस्कृति को संजोए रखने का शुभ संकल्प लें। सूर्य देव के उच्च होने के साथ ही कोरोना वायरस का खतरा पूरी दुनिया से खत्म हो यही प्रार्थना करें।

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